सिर्फ एक सफ़ाह..
पलटकर उसने,
बीती बातों की दुहाई दी है।
फिर वहीं लौट के जाना होगा,
यार ने कैसी.....
रिहाई दी है।
-Gulzar

 

बैठे-बिठाए, हाल-ए-दिल-ज़ार खुल गया...
मैं आज उसके सामने बैठकर बेकार खुल गया। -Munawwar Rana

जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं है,
 वो दिल नहीं है, दिल नहीं है, दिल नहीं है।.....

तुम ज़माने के हो हमारे सिवाय....
हम किसी के नहीं, तुम्हारे हैं......

tum jamane ke ho hamare siwaay,
hum kisi ke nahi,tumhare hain..

वो छोटी-छोटी उड़ानों पे गुरूर नहीं करता.....
जो परिंदा अपने लिए आसमान ढूंढता है....

मेरे बारे में कोई राय मत बनाना ग़ालिब,
मेरा वक्त भी बदलेगा तेरी राय भी...!.

एक आंसू भी...
हुकूमत के लिए ख़तरा है...
तुम ने देखा नहीं...
आंखों का समुंदर होना...
-Munawwar Rana

चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई...
कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठता नहीं धुआं।.
-Gulzar

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल....
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
-मिर्जा ग़ालिब

ख्वाहिशों से भरा पड़ा है मेरा घर इस कदर...
रिश्ते जरा-सी जगह को तरसते हैं।.
-Gulzar

सांस लेना भी कैसी आदत है...
जिए जाना भी क्या रवायत है...
कोई आहट नहीं बदन में कहीं...
कोई साया नहीं आंखों में...
पांव बेहिस हैं, चलते जाते हैं...
इक सफर है जो बहता रहता है...
कितने बरसों से कितनी सदियों से..
जिए जाते हैं, जिए जाते हैं...
-Gulzar

तुमसे बिछड़ा तो पसन्द आ गयी बेतरतीबी,.
इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था!.
-Munawwar Rana

आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक,
 कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ के सर होने तक! -मिर्ज़ा ग़ालिब.....!

एक न इक रोज़ तो होना है ये जब हो जाए,
 इश्क का कोई भरोसा नहीं कब हो जाए।- Munawwar Rana

 

उधर वो बद-गुमानी है, इधर ये ना-तवानी है......
न पूछा जाए उससे और न बोला जाए मुझसे।- मिर्जा गालिब


इसी में इश्क़ की क़िस्मत बदल भी सकती थी,
 जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में। - कैफी आजमी

तेरी यादों के जो आखिरी थे निशान,
दिल तड़पता रहा, हम मिटाते रहे।

 teri yaadon ke jo aakhiri the nisaan,
dil tadapta rahahum mitate rahe....

दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है,
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता....

dil ko teri chahat pe,bharosa bhi bahut hai...
aur tujh se bichadne ka dar bhi nhi jata...

बदल जाओ वक्त के साथ...
या फिर वक्त बदलना सीखो...
मजबूरियों को मत कोसो...
हर हाल में चलना सीखो...

Suna hai aaj samandar mein, bada guman aaya hai,
udhar hi le chalo kashti,jaha toofan aaya hai.....!
 
लिखना था कि...
खुश हैं तेरे बगैर भी यहां हम,
मगर कमबख्त...
आंसू हैं कि कलम से...
पहले ही चल दिए।

तलाश मेरी थी और भटक रहा था वो,
दिल मेरा था और धड़क रहा था वो।
प्यार का ताल्लुक भी अजीब होता है,
आंसू मेरे थे और सिसक रहा था वो।

अब जानेमन तू तो नहीं,
शिकवा -ए-गम किससे कहें.....
या चुप हें या रो पड़ें,
किस्सा-ए-गम किससे कहें।

जो दिल के करीब थे ,वो जबसे दुश्मन हो गए....
जमाने में हुए चर्चे ,हम मशहूर हो गए...

jo dil ke kareeb the,vo sabse dushman ho gye..
jamane mein hue charche,hum mashoor ho gaye..

अब काश मेरे दर्द की कोई दवा न हो....
बढ़ता ही जाये ये तो मुसल्सल शिफ़ा न हो...
बाग़ों में देखूं टूटे हुए बर्ग ओ बार ही...
मेरी नजर बहार की फिर आशना न हो...

ab kash mere dard ki koi dawa na ho..
badhta hi jay to musalsalsifa na ho..
baghon mein dekhu tute hue berg oo bar hi..
meri nazar bahar ki phi aashna na ho...